Saturday 15 August 2020

हिंदुस्तान मेरी पहचान हो।

कुछ रंग हवाओं  संग आजादी के हो ,
हो केसर की खुशबू,  हरित चमन  हो ,

श्वेत वर्ण हो पल्लवित , कण कण में,
जन जन- मानस में चैन ओ अमन हो।
उस नील गगन से इस मातृभूमि तक 
अशोक चक्र सा प्रगतिशील भुवन हो ।

हो हिमालय सा दृढ़ निश्चय हर जन में,
ख्वाहिशों की खातिर संकल्पित मन हो।
गुलामी की जंजीरे न बंधी हो विचारो मेें,
सपनो की उड़ान को उन्मुक्त गगन हो ।


भाव हो त्याग व बलिदान के , मन में,
समर्पित होकर शहीदो  का सम्मान हो । 
तन मन धन न्योछावर हो इस मिट्टी पर ,
कतरा-कतरा लहू  भारत मां के नाम हो ।

एसे कुछ रंग हवाओं संग आजादी के हो ,
हो तिरंगा शान,हिदुस्तान मेरी पहचान हो ।





@पवन कुमार वर्मा ।
15.08.2020



Saturday 11 July 2020

न्याय।

एक अपराध की कोशिश होती है ।
और पूरी हो जाती है । 
दर्ज हो जाते है मामले 
भिन्न भिन्न धाराओं में
चलती है तफ्तीशें , 
अदालतों में पेश होती है दलीलें ,
पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें ।

कोई,
रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है
 कदाचित् लोक सेवकों के पांव ,
लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है ,
अंततः
वह तो मिल ही जाता फरियादी को ,
लेकिन कर नहीं पाता न्याय ,
क्योंकि  वह बिक जाता है ।
नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में ,
और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में ।

संवेदनाएं अभी भी होती है साथ
किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार,
मंजूर कर लेता है अपनी हार,
क्योंकि 
वह समझता है, 
वह नहीं है रसूखदार,
 न ही वह कानूनी तजुर्बेकार ,
उसे नहीं मिल सकता न्याय।
 मूंद लेता है आंखे ,
न्याय देवी की तरह
 बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी ,
न्याय के तराजू में
नहीं डाल पाता सबूतो का भार ,


न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है ,
किसी न किसी पाले में ,
स्थिर नहीं रहा सका कभी यह,
 रहा है स्वतंत्र कब तक ?
दशको से चला है उत्तोलक के सिंद्धांत पर, 
आलंबो के सहारे चला है लोकतंत्र में
न्याय  अब तक ।

#पवन कुमार वर्मा ।
@03/06/2020














Thursday 18 June 2020

नशा छोड़िये

नशा छोड़िये , नशा छोड़िये , नशा छोडिये,
जीने की तरफ, रुख मोड़िये , रुख मोड़िये ।

किसका हुआ भला , नशे ने  किसकी जान बचाई है ।
चरस गांजा अफीम से हुआ कौन कब किसका भाई है ?
हमने दुश्मन ही बनते देखे  ,नशे में बिखरते रिश्ते देखे ,
इन बिखरे रिश्तो की लाज बचाने को तो नशा छोड़िये ,
नशा छोडिये, नशा छोड़िये,
जीने की तरफ रुख मोड़िये , रुख मोड़िये ।

मां-बाप आस लगाए बैठै हैं कि बेटा  घर लौट आयेगा ,
वो नशे में हो धुत तो मां-बाप पर क्या क्या बीत जायेगा ?
हमने टूटते देखे मां बाप, इन आंखो में बुनते सपने देखे ,
इन सपनो को हकीकत बनाने को तो नशा छोड़िये,
नशा छोड़िये नशा छोड़ियें,
जीने की तरफ रुख मोड़ियें , रुख मोड़ियें ।


नन्हे बच्चो की आंखो में तुमको सुपर मैन होते देखा है,
इतंजार भरी आंखो में पत्नी को क्या कभी तुमने देखा है?
हमने वो सब अरमां देखें, परिवार में तुम खुदा होते देखे,
इस खुदाई में घर की खुशियां लाने को तो नशा छोड़िये,
नशा छोड़िये, नशा छोड़िये,
जीने की तरफ रुख मोड़िये, रुख मोड़िये।



इंजै्क्शन चिट्टा लेने वालो तुमको मौत बुरी तरह तड़पायेगी ,
ये नशे की आदत कब  तक जुर्म की दुनियां से  बचायेगी ?
हमने जब भी देखे पांव तुम्हारे, हवालात या शमशान में देखे ,
शमशान व मौत के इस चंगुल से बचने को तो नशा छोड़िये,
नशा छोड़िये, नशा छोड़िये ।
हाथ जोड़कर विनती है नशा छोड़िये ।



#पवन कुमार वर्मा ।
दिनांकः- 18-06-2020


Monday 18 May 2020

एक अदद मास्क ।




एक अदद मास्क।


आज

शस्त्र संपन्न विश्व है निःशस्त्र
वायरस फैला सर्वत्र ।
संपन्न हो या दरिद्र, 
एक है दोनो के प्रति इसका चरित्र ।
विश्व ने साबित किया चीनी अक्रांता,
क्या इटली ,जापान ,स्पेन  अमेरिका 
सबकी जाने ये लील रहा ।
भारत में भी है तांडव को आतुर ,
सुध ले लो तुम इसकी 
हो जाओ इसके लिए निष्ठुर ।
निर्देश सरकार के मानो ,
कर्फ्यू लॉकडाउन का महत्व जानो,
अनुशासन को अपना लो,
हाथ साबुन से धोकर,
सोशल डिस्टैंस बना लो ,
बचाव मे ही बचाव है , 
इसलिए 
घर पर रहकर खुद को बचा लो।
स्वघोषित  शक्तिशाली तुम आत्मघाती न बनो,
अदृश्य दुश्मन के सामने तुम बलशाली न  बनो,
योद्धा हो तो दो चतुरता का परिचय,
कुछ वार  सहकर न करो विस्मय।
विज्ञान न ढूंढ ले जब तक कोई दवा वैक्सीन,
हृदय में आत्मदृढ़ता का सृजन कर
करो दुआ कि रहे आमीन !
उपलब्ध साधनो को शस्त्र बना लो,
अस्थाई ही सही कुछ तो ढाल बना लो।
कि न फैल सके करोना संक्रमण ,
चाहते हो अगर कि करें हम भी इस पर आक्रमण ,
तो है जो तुम्हारे पास एक हथियार ,
सही से प्रयोग करो इसका,
दवा न आती,तब तक इसी से आगे बढ़ाओ टास्क,
नाक मुंह ढककर रखो तुम,
सुनिश्चित करो पहनना एक अदद मास्क ।


#पवन कुमार वर्मा ।
दिनांकः- 18 मई 2020








Thursday 14 May 2020

आजकल हम कुछ खुश रहने लगे हैं......

आजकल हम कुछ खुश से रहने लगे हैं ,
उनसे नहीं शिकायत हम कहने लगे है।

चुप जो थे हम  गमों को लेकर अरसे से,
जिक्र कर उनसे हम बेफिक्र रहने लगे हैं ।

किसी बात की नहीं हम ढूंढते अब वजह,
यूं ही अब हम बेवजह खोये रहने लगें हैं।

न कोई गिला किसी से न कोई रंज ए दिल,
हम तो यूं हीं बेख्याली में डूबे रहने लगे हैं।

कभी जो थे देखकर अपनी खुशी में  खुशी
उनसे मिलके दूसरों के लिये  जीने लगे है।

#पवन कुमार वर्मा 
13 मई 2020


Tuesday 12 May 2020

नर्स

आज,

घिन्न है इंसानो को इंसानो से,
सुखो में भी साथ नहीं रहता कोई ,
लिबाजो से तय होती है इज्जत ,
जख्मो को कुरेदता है हर कोई। 
कोई घायल हो या बीमार 
पड़ा रहता है गरीबखानो में ,
पुलिस छोड़ भी दे अगर अस्पताल ,
तो भी परिजन करते हैं केवल इंतजार ,
अस्पतालो की किसी फर्श पर दिन ढल जाते है ,
जिदंगी चैन से न हुई ,  
मौत तो सूकुन की मिले ,
जिंदगी जिल्लत में गई ,
आखरी वक्त तो इज्जत मिले,
दर्द में विचार ये दिल में भर जाते है।
तब एक हाथ आगे आता है ,
किसी फरिश्ते कि तरह , 
जख्मों पर मरहम कर , 
दवा पट्टी करता है , 
डाक्टर साहब करते हैं जो चैकअप व ट्रीटमैंट,
इंपलीमैंट यही करता है।
लिबाजो का फर्क नहीं समझता,
एक हाथ से ही सबका इलाज कर देता है।
मौत की आस से
उठा कर जिंदगी कि किरण जगा देता है ।
याद रखियें 
यह केवल हाथ नहीं होता , ये भी इंसान होता है ,
जो करता है सेवा निस्वार्थ भाव, 
जिसके हम न पिता है न पुत्र लगते है।
फिर भी निभा जाता है पिता ,पुत्र, बहन जैसे फर्ज ।
और चिता हो चुके इंसान को कर देता है स्वस्थ ।
किसी भी अस्पताल में जायें,
जरुर दिखता है यह फरिश्ता ,
कमतर ही नाम पता चल पाता है,
क्योंकि इसे सभी कहते है सिस्टर ,
डॉ0 भगवान है तो ये भी फरिश्ता है ,
जब अपनो से ज्यादा केयर करती है।
एक नर्स ।


#पवन कुमार वर्मा ।
दिनांक 12 मई 2020 ।

Pics credits to google.


देव बथिंदलु स्तुति



जय हो देवा मेरै बथिंदलुआ.............








जय हो देवा मेरेै बथिंदलुआ, महाराजया मेरे ओ शाटकया।
माता भगवती बोलू तां-साथे, तेरे पूजा करू जियु  क देवा ।।

उंदे के बोलू सतलुज रा किनारा , उबड़ा तैरा मंदिर प्यारा।
बांका अ तेरी भज्जी रा नजारा , गानवीं-पलग स्थान न्यारा।।

पालकी रा तेरी नजारा शोपटा,चार भाये नचाओ जियु लबदा। 
चालो जौ गूर रा शांगल चिमटा ,बाजौ ढोल नगाड़े हरणशिंगा ।

तेरै पंच बैठे बोलौ परमेश्वरो री, फैसले देओ माछ रे हक दै।
जय जय कार  कुर्बाण करो ,तेरे नाओं जप य आवहान् करो।।

अर्जो करु आपणेै दुःख तेरेेै द्वारेै, दुःख सुख लो शुणी तू म्हारे।
बाट जे तू जीवणै रे दिखा , छोटू समझय माफ कर पाप म्हारे।।


किरपा करे राखे तू उम्र सारी, हरे ल म्हरी सारी हारी बमारी।
शक्तेै दे तू जियु दे लड़ने कै, सरीकौ न राखी उम्र ज्यूंदे सारी ।।

जय हो देवा मेरै बथिदलुआ , महाराजया मेरै ओ शाटकया।
माता भगवती बोलू तां-साथे, भूल चूक सारी माफ चाऊ देवा।।

                                                            
 #पवन कुमार वर्मा । 
दिनांक 12.05.2020


शब्दार्थः-
               01. जियु                     - दिल , हृदय
               02. उंदे                      -नीचे की तरफ
               03.  शोपटा                 -सुंदर, मनमोहक
               04.  लबदा, लोब         - लुभावना ,मन मोहक
               05.  गूर                       - एसा इंसान जिसमें देवता प्रवेश करते है ।
               06.  हरण शिंगा           - देवनृत्य में बजाया जाने वाला पहाड़ी वाद्य यंत्र इसे रण शिंगा भी कहते हैं ।
               05. माछ, मैच्छ            - इंसान आदमी,
               06. नाओं                     - नाम
               07. बाट                      - रास्ता
               08. किरपा                  -कृपा , अनुग्रह।
               09. सरीक                   - दुश्मन, बुरा चाहने वाला
               10. चाउ                      -चाहता हूँ ।
           
प्रिय दोस्तो ,
                यह कविता/गीत  भज्जी रियासत के प्रसिद्ध देवता महाराज बथिंदलु जी की स्तुति में भज्जी की स्थानीय भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है। देवता बथिंदलु जी का मंदिर गांव पलग,गानवीं ,तैहसील सुन्नी पुरानी रियासत भज्जी  जिला शिमला में है हलांकि इनका पुराना व मूल स्थान गांव पजैली रियासत भज्जी में माना जाता है । देवता बथिंदलु महाराजा के साथ देव शाटका व माता भगवती जी हैे ,साथ ही अन्य शक्तियां भी है , जो देव महाराज बथिंदलू की ध्वजा व परचम को लहराये हुए हैं । इसके अतिरिक्त भज्जी रियासत में ही व शिमला के अन्य स्थानो पर भी देव बथिंदलु  शाटका महाराज व मां भगवती के पूजनीय स्थल है। देव बथिंदलु शाटका महाराज मां भगवती के बारे में यदि आपके पास भी कोई सटीक जानकारी है तो कमैंट सैक्शन में अवश्य लिखें जिससे की हमें भी औऱ अधिक जानकारी प्राप्त होगी ।
                                      धन्यवाद ,
                                                                          #पवन कुमार वर्मा ।


Monday 4 May 2020

निशा-पवन

।।निशा-पवन।।



दूर क्षितिज,ढलते सूरज की ज्योति शिथिल,
सांझ उतरी वसुधा पर ओढ़े तिमिर।


दिन की लाली हुई लुप्त  ,
निशा बावली है आगंतुक। 
खग-विहग दुूबके शाखों में ,
निशाचर निकले विश्रामों से।
नगरो का शोर चला मंद मंद ,
बजने लगे पूजा के शंख घंट,
सांझ बावली हो चली, 
वो मंद मंद निशा हो चली ।


तपती दोपहरी लू अब प्राणघाती न लगे,
ये सांझ पवन अब निशा संग बहने लगे,
ज्यों ज्यों निशा  बिखेरने लगे पंख,
प्राण-वायु,  देती सीने को ठंड।
वो दिन में जो जाने लील चुकी,
लू थी तो किसकी जान बख्शी ?
उषा की प्राणवायु  ,
दिन की लू होकर पाये कलंक,
ज्यों निशा हुई संग, पवन
होने लगी निष्कंलंक ।


आसमां के चंद्र संग टिमटिमाते रहे तारे,
 इधर वसुधा पर निशा संग पवन गोते मारे,
निशाचर है बेफिक्र,प्रकृति है बिल्कुल शांत,
नगर-कस्बे-शहर मौन ,दिन में होते जो अशांत।
आओ इस मौन में निशा के गीत सुने,
गुनगुनाती पवन,के अधरो की प्रीत सुने।
निशा संग विहार गीत गा रही पवन ,
आओ  इनके मिलन गीत सुने ।
आज जब रिश्ते हो गये बंधन,
क्या तुमने देखे है एसे मनमीत,
नफा नुकसान में बन रहे रिश्ते।
न कोई बुनता प्रेम प्रीत, न गाता विरह गीत ।


अठखेलियां जो जारी है इस पहर,
जरूरी है जीवन में , न उठे सिहर ,
नीरस अगर हो चुके,
कभी निकलो प्रकृति में इस पहर , और
सुनो निशा से गुनगुनाती पवन ,
भीतर मन से क्षण भर निहारो ये वन उपवन ,
पल्लवित होगी मन में आशा- किरण ,
नीरस जग में रस का होगा जन्म ,
हृदय में कल्पना पंख प्रस्फुटित करेगी,
निशा-पवन।


#पवन_कुमार_वर्मा।
  06 मई 2020








Wednesday 29 April 2020

कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही.......


कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही.......


कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही है जिंदगी में ,
जरुरी तो नहीं ये कि हर ख्वाहिश पूरी मिले।।....1

कुछ न होकर साथ चले जब बेवक्त राहगीर,
जरुरी तो नहीं ये कि हर दिल से दिल मिले।।.....2

अगर हम लफ्जो में कहें कि बुरे हेै वो हमसे  ,
जरूरी तो नहीं ये कि वो  यूं हमारे जैसे मिले।।....3

जाने कितने मिलते हेैं गैरो की खुशी में दुखी ,
जरुरी तो नही ये कि हर खुशी मे खुशी मिले।।....4

कैसे कहूं कि दौलत में हैं छुपी  खुशियां सारी,
कमबख्त कोई दौलत ठुकुरा कर हमसे मिले।।...5


#पवन कुमार वर्मा ।
अप्रैल 2020

Saturday 25 April 2020

शांति संदेश

शांति संदेश ।।

युद्धभूमि है सुनसान पड़ी ,फिर भी युद्ध है आज,
ना कुरु भूमि पर कोई खड़ा , न विश्व युद्ध है आज,

न सीमा तोड़कर गोलियां चली है, 
न गृह युद्ध है,न किसी से दुश्मनी है।
सड़के सुनसान , शहर वीरान है ,
आखिर क्यों है बाद समर, से हालात।
इंसान क्या भूल गया बनाना वह हथियार,
या आशियानो में कैद होना है छोटी बात ।
न कोई पार्थ है, न दिया किसी ने कृष्ण संदेश , तो
क्यों नतमस्तक हो, क्यों पंच परमेश्वर के पेश ।
कहां गया वह विज्ञान , कहां गये सारे अविष्कार,
घोषित हो जिसके बूते तुम सकल जग के तारणहार।
क्या भूल गये विद्या सारी या भूल हो गई कोई भारी,
क्यों निरुत्तर हो गये तुम फैलने पर एसी महामारी।
अब ढूंढ क्यों नहीं लेते कोई इंजेैक्शन कोई वैक्सीन ,
पीड़ा न होती लाखो मरणासन्न देख कर ? 
या शब्द शेष है केवल
"आमीन !"

होती है सभी को पीड़ा होती है ,
प्रकृति हो या कोई सजीव , सहने की सीमा होती है ,
जब लांघ जाये कोई सीमा पार , तो कौन रोक सकता है विनाश ।
कितना छीना है आज तक मां प्रकृति से , 
लौटाया कितना है, कितना किया पर्मारथ ,
कितने निर्दोष सजीवो पर कर अघात, तुम लड़ने को निराकार से तैयार,
मानो तुम हो सृष्टी के रचनाकार ।

निःसंदेह, तुम हो शक्ति शाली, बलशाली,
अणु-परमाणु से सुसज्जित तुम हाईड्रोजन बम तक बना चुके हो । 
लेकिन मानव कल्याण के लिये कौन सा अस्त्र प्रयोग किया है,
जब विनाश ही रचा है तो प्रकृति से तुम क्या आशा करते हो ।
एक वायरस ही तो है खैर,
 कौन सा प्रकृति ने अणु परमाणु बम फैंक दिया है ।
निपट लो इससे, स्वउद्घोषित निराकार !
आखिर लाख गुना छोटा है तुमसे ,
क्यों मौन हो, क्या लाखो मौतो का है इंतजार ।

ए मूर्ख ! स्वउद्घोषित निराकार !
क्या समझ नहीं पाये अब तक प्रकृति का प्रतिकार ।
किस बात का गुरुर है ,
एक वायरस ने जब करा दिये हो खड़े हाथ ।
ए मूर्ख अज्ञानी , सुन ले क्या चाहती है मां प्रकृति रानी ।
कब लौटायेगा जो प्रकृति से लिया है ,
कब करोगे पराश्चित निश्चछल बेजुबानो का हक जो लिया है ।
लौटा दो मां को वो रुप-सौदर्य सम्मान पुराना , 
हक जिसे वो चाहती है ।
नीर,गगन, पवन, पहाड़ साफ रहे। यहीं श्रृंगार तो मां चाहती है ।
जो भी उसका है उससे लिया है उसका सम्मान चाहती है ।
ऋषि मनीषियों ने जो दिया, वही सत्कार आज चाहती है ।

तुम अगर न दे सको ये सब तो मां को मां तो मानो,
देवी स्वरुपा को तुम रखैल न बनाओ ।
चाहते हो उद्धार तो सकल जग में शांति संदेश फैलाओ ।
निर्बलो के संरक्षक बनो तुम , सकल युद्धो का त्याग करो ।

यदि हठ है अभी और कोई शेष,
तो याद रखना, उस आंचल में 
वायरस केवल एक नहीं अशेष ,
उसके पास और बुरा भी बाकी है ।

बेहतर है कि हम सीख लें सबक भूलो सें ,
पराश्चित करें, संजोकर धरोहर, सजीव, पेड़ पोधे व फूलों से,
वायरस के बहाने जो मिला है मौका और संदेश ,
मां प्रकृति की है चेतावनी और यही है शांति संदेश ।।


#पवन_कुमार_वर्मा ।
 25अप्रैल 2020

images courtesy to Google.














Friday 10 April 2020

हम थे कुछ भी नहीं .......

हम थे कुछ भी नहीं .......


हम थे कुछ भी नहीं मगर उसने हीरा कह दिया,
खाक थे जो  फर्श के एक लफ्ज ने अर्श कह दिया।

 सोचा न था के हमें होगी एसे उनसे  दिल्लगी कभी,
 साथ ही मिला कुछ एसा के हमने  इश्क कह दिया।

वादें इकरार जो हुए चाहे न हुए  पूरे  दिलो के कभी,
मगर साथ रहा कुछ एसा के हमने वफा कह दिया ।

तकरारो का क्या वो तो हुई इश्क मे उनसे भी बहुत,
मगर पास थे वो हमारे तो हमने  इकरार कह दिया।

कब्जा करने की आदत न थी हममे गैरो को कभी,
वो देख ही गये कुछ एसा के हमने अपना कह दिया।

जितना भी रहा जब तक रहा साथ हमारा  प्यारा था,
सोचता हूं क्या नाम दूं तो एक पन्ना अधूरा कह दिया।

आज पास नहीं है  फिर भी जिंदा है वो हरकतो में हमारी,
जिंदादिली सीखा गये जो हमने उसे ज्योति
कह दिया।।



 # पवन कुमार वर्मा।


Saturday 1 February 2020

नाईट मुंशी


"नाईट मुंशी" 

महीना बीत गया है रात्रि सेवा देते देते,
इंतजार है कोई सुध तो ले ,
तुम पूछोगे ये रात्रि सेवा क्या है ,
बस जान लो इंसान छोड़ पिशाच होना है । 
सो हो गया हूँ मैं भी अब पिशाच सा ही,
रोज शाम सुबह होती है शुरु होती है रात्रि चर्या ,
 निशाचरो सा भटकता तो नही,
 लेकिन एकटक रहता हूं रात भर,
जाने कब कहां से कौन सी खबर आ जाये ,
यहां कोई इंसान या प्रेत नही बल्कि
टेलीफोन की एक घंटी  मचा देती है तहलका रात भर,
कदाचित तोड़ देती है रात का सन्नाटा,
फिऱ भी पिशाच तो पिशाच ही है ,
एकपल भी आंख नही मूंदता,
साक्षी है ये रातो के चारो पहर के ढलने का ,
जो अक्सर अकेला रहता है रात भर ।
लेकिन एकमात्र नहीं है ,
मौजूद है एसा ही एक पिशाच आज हर थाने में ,
कुछ दिनो की बात हो तो ठीक है पिशाच होना  ,
लेकिन महीने हो जाये तो इंसानी आदते दूर होने लगती है,
प्रेत योनी की तरफ अग्रसन होने लगती है जिंदगी,
भयवाह लगने लगता है उजाला,
एसे ही उजाले से महीने दूर हो गये है मुझे भी,
इससे पहले की डराने लगे मुझे यह उजाला ,
कहीं बन न जाउं इंसान होकर भी पिशाचो सा,
ए हुक्मरानो बदल दो ये रात्रि सेवा ,
एक या दो दिन हो तो खुशी से जी ले पिशाच योनी भी,
 लेकिन महीनो चाहो तो संभव नहीं है रात्रि मुंशी सेवा ।।

#पवन कुमार वर्मा ।।
दिनांक 01.02.2020













एक तुम हों, एक हम हो

।। गीत ।। चाहतें , कम न हो । बातें , खत्म न हो। एक तुम हो ,  एक हम हों, न कोई गम हो , जब तुम संग  हो। मैं कहूं तुमको , तुम सुनो न, मैं देखू ...