Saturday 11 July 2020

न्याय।

एक अपराध की कोशिश होती है ।
और पूरी हो जाती है । 
दर्ज हो जाते है मामले 
भिन्न भिन्न धाराओं में
चलती है तफ्तीशें , 
अदालतों में पेश होती है दलीलें ,
पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें ।

कोई,
रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है
 कदाचित् लोक सेवकों के पांव ,
लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है ,
अंततः
वह तो मिल ही जाता फरियादी को ,
लेकिन कर नहीं पाता न्याय ,
क्योंकि  वह बिक जाता है ।
नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में ,
और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में ।

संवेदनाएं अभी भी होती है साथ
किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार,
मंजूर कर लेता है अपनी हार,
क्योंकि 
वह समझता है, 
वह नहीं है रसूखदार,
 न ही वह कानूनी तजुर्बेकार ,
उसे नहीं मिल सकता न्याय।
 मूंद लेता है आंखे ,
न्याय देवी की तरह
 बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी ,
न्याय के तराजू में
नहीं डाल पाता सबूतो का भार ,


न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है ,
किसी न किसी पाले में ,
स्थिर नहीं रहा सका कभी यह,
 रहा है स्वतंत्र कब तक ?
दशको से चला है उत्तोलक के सिंद्धांत पर, 
आलंबो के सहारे चला है लोकतंत्र में
न्याय  अब तक ।

#पवन कुमार वर्मा ।
@03/06/2020














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