एक अपराध की कोशिश होती है ।
#पवन कुमार वर्मा ।
@03/06/2020
और पूरी हो जाती है ।
दर्ज हो जाते है मामले
भिन्न भिन्न धाराओं में
चलती है तफ्तीशें ,
अदालतों में पेश होती है दलीलें ,
पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें ।
कोई,
रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है
कदाचित् लोक सेवकों के पांव ,
कदाचित् लोक सेवकों के पांव ,
लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है ,
अंततः
वह तो मिल ही जाता फरियादी को ,
लेकिन कर नहीं पाता न्याय ,
क्योंकि वह बिक जाता है ।
नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में ,
और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में ।
संवेदनाएं अभी भी होती है साथ
किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार,
मंजूर कर लेता है अपनी हार,
क्योंकि
क्योंकि
वह समझता है,
वह नहीं है रसूखदार,
न ही वह कानूनी तजुर्बेकार ,
उसे नहीं मिल सकता न्याय।
मूंद लेता है आंखे ,
न्याय देवी की तरह
बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी ,
न्याय के तराजू में
नहीं डाल पाता सबूतो का भार ,
न ही वह कानूनी तजुर्बेकार ,
उसे नहीं मिल सकता न्याय।
मूंद लेता है आंखे ,
न्याय देवी की तरह
बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी ,
न्याय के तराजू में
नहीं डाल पाता सबूतो का भार ,
न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है ,
किसी न किसी पाले में ,
स्थिर नहीं रहा सका कभी यह,
रहा है स्वतंत्र कब तक ?
रहा है स्वतंत्र कब तक ?
दशको से चला है उत्तोलक के सिंद्धांत पर,
आलंबो के सहारे चला है लोकतंत्र में
न्याय अब तक ।
#पवन कुमार वर्मा ।
@03/06/2020