Saturday 25 April 2020

शांति संदेश

शांति संदेश ।।

युद्धभूमि है सुनसान पड़ी ,फिर भी युद्ध है आज,
ना कुरु भूमि पर कोई खड़ा , न विश्व युद्ध है आज,

न सीमा तोड़कर गोलियां चली है, 
न गृह युद्ध है,न किसी से दुश्मनी है।
सड़के सुनसान , शहर वीरान है ,
आखिर क्यों है बाद समर, से हालात।
इंसान क्या भूल गया बनाना वह हथियार,
या आशियानो में कैद होना है छोटी बात ।
न कोई पार्थ है, न दिया किसी ने कृष्ण संदेश , तो
क्यों नतमस्तक हो, क्यों पंच परमेश्वर के पेश ।
कहां गया वह विज्ञान , कहां गये सारे अविष्कार,
घोषित हो जिसके बूते तुम सकल जग के तारणहार।
क्या भूल गये विद्या सारी या भूल हो गई कोई भारी,
क्यों निरुत्तर हो गये तुम फैलने पर एसी महामारी।
अब ढूंढ क्यों नहीं लेते कोई इंजेैक्शन कोई वैक्सीन ,
पीड़ा न होती लाखो मरणासन्न देख कर ? 
या शब्द शेष है केवल
"आमीन !"

होती है सभी को पीड़ा होती है ,
प्रकृति हो या कोई सजीव , सहने की सीमा होती है ,
जब लांघ जाये कोई सीमा पार , तो कौन रोक सकता है विनाश ।
कितना छीना है आज तक मां प्रकृति से , 
लौटाया कितना है, कितना किया पर्मारथ ,
कितने निर्दोष सजीवो पर कर अघात, तुम लड़ने को निराकार से तैयार,
मानो तुम हो सृष्टी के रचनाकार ।

निःसंदेह, तुम हो शक्ति शाली, बलशाली,
अणु-परमाणु से सुसज्जित तुम हाईड्रोजन बम तक बना चुके हो । 
लेकिन मानव कल्याण के लिये कौन सा अस्त्र प्रयोग किया है,
जब विनाश ही रचा है तो प्रकृति से तुम क्या आशा करते हो ।
एक वायरस ही तो है खैर,
 कौन सा प्रकृति ने अणु परमाणु बम फैंक दिया है ।
निपट लो इससे, स्वउद्घोषित निराकार !
आखिर लाख गुना छोटा है तुमसे ,
क्यों मौन हो, क्या लाखो मौतो का है इंतजार ।

ए मूर्ख ! स्वउद्घोषित निराकार !
क्या समझ नहीं पाये अब तक प्रकृति का प्रतिकार ।
किस बात का गुरुर है ,
एक वायरस ने जब करा दिये हो खड़े हाथ ।
ए मूर्ख अज्ञानी , सुन ले क्या चाहती है मां प्रकृति रानी ।
कब लौटायेगा जो प्रकृति से लिया है ,
कब करोगे पराश्चित निश्चछल बेजुबानो का हक जो लिया है ।
लौटा दो मां को वो रुप-सौदर्य सम्मान पुराना , 
हक जिसे वो चाहती है ।
नीर,गगन, पवन, पहाड़ साफ रहे। यहीं श्रृंगार तो मां चाहती है ।
जो भी उसका है उससे लिया है उसका सम्मान चाहती है ।
ऋषि मनीषियों ने जो दिया, वही सत्कार आज चाहती है ।

तुम अगर न दे सको ये सब तो मां को मां तो मानो,
देवी स्वरुपा को तुम रखैल न बनाओ ।
चाहते हो उद्धार तो सकल जग में शांति संदेश फैलाओ ।
निर्बलो के संरक्षक बनो तुम , सकल युद्धो का त्याग करो ।

यदि हठ है अभी और कोई शेष,
तो याद रखना, उस आंचल में 
वायरस केवल एक नहीं अशेष ,
उसके पास और बुरा भी बाकी है ।

बेहतर है कि हम सीख लें सबक भूलो सें ,
पराश्चित करें, संजोकर धरोहर, सजीव, पेड़ पोधे व फूलों से,
वायरस के बहाने जो मिला है मौका और संदेश ,
मां प्रकृति की है चेतावनी और यही है शांति संदेश ।।


#पवन_कुमार_वर्मा ।
 25अप्रैल 2020

images courtesy to Google.














4 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया दीपक भाई , सीख रहे हैं बस हुनर मन की बातो को शब्दो में पिरोने का ।

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  2. Replies
    1. कविता पढ़ने के लिए शुक्रिया सर !

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