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Showing posts from 2020

हिंदुस्तान मेरी पहचान हो।

कुछ रंग हवाओं  संग आजादी के हो , हो केसर की खुशबू,  हरित चमन  हो , श्वेत वर्ण हो पल्लवित , कण कण में, जन जन- मानस में चैन ओ अमन हो। उस नील गगन से इस मातृभूमि तक  अशोक चक्र सा प्रगतिशील भुवन हो । हो हिमालय सा दृढ़ निश्चय हर जन में, ख्वाहिशों की खातिर संकल्पित मन हो। गुलामी की जंजीरे न बंधी हो विचारो मेें, सपनो की उड़ान को उन्मुक्त गगन हो । भाव हो त्याग व बलिदान के , मन में, समर्पित होकर शहीदो  का सम्मान हो ।  तन मन धन न्योछावर हो इस मिट्टी पर , कतरा-कतरा लहू  भारत मां के नाम हो । एसे कुछ रंग हवाओं संग आजादी के हो , हो तिरंगा शान,हिदुस्तान मेरी पहचान हो । @पवन कुमार वर्मा । 15.08.2020

न्याय।

एक अपराध की कोशिश होती है । और पूरी हो जाती है ।  दर्ज हो जाते है मामले  भिन्न भिन्न धाराओं में चलती है तफ्तीशें ,  अदालतों में पेश होती है दलीलें , पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें । कोई, रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है  कदाचित् लोक सेवकों के पांव , लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है , अंततः वह तो मिल ही जाता फरियादी को , लेकिन कर नहीं पाता न्याय , क्योंकि  वह बिक जाता है । नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में , और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में । संवेदनाएं अभी भी होती है साथ किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार, मंजूर कर लेता है अपनी हार, क्योंकि  वह समझता है,  वह नहीं है रसूखदार,  न ही वह कानूनी तजुर्बेकार , उसे नहीं मिल सकता न्याय।  मूंद लेता है आंखे , न्याय देवी की तरह  बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी , न्याय के तराजू में नहीं डाल पाता सबूतो का भार , न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है , किसी न किसी पाले में , स्थिर नहीं रहा सका कभी यह,  रहा है स्वतंत्र कब ...

नशा छोड़िये

नशा छोड़िये , नशा छोड़िये , नशा छोडिये, जीने की तरफ, रुख मोड़िये , रुख मोड़िये । किसका हुआ भला , नशे ने  किसकी जान बचाई है । चरस गांजा अफीम से हुआ कौन कब किसका भाई है ? हमने दुश्मन ही बनते देखे  ,नशे में बिखरते रिश्ते देखे , इन बिखरे रिश्तो की लाज बचाने को तो नशा छोड़िये , नशा छोडिये, नशा छोड़िये, जीने की तरफ रुख मोड़िये , रुख मोड़िये । मां-बाप आस लगाए बैठै हैं कि बेटा  घर लौट आयेगा , वो नशे में हो धुत तो मां-बाप पर क्या क्या बीत जायेगा ? हमने टूटते देखे मां बाप, इन आंखो में बुनते सपने देखे , इन सपनो को हकीकत बनाने को तो नशा छोड़िये, नशा छोड़िये नशा छोड़ियें, जीने की तरफ रुख मोड़ियें , रुख मोड़ियें । नन्हे बच्चो की आंखो में तुमको सुपर मैन होते देखा है, इतंजार भरी आंखो में पत्नी को क्या कभी तुमने देखा है? हमने वो सब अरमां देखें, परिवार में तुम खुदा होते देखे, इस खुदाई में घर की खुशियां लाने को तो नशा छोड़िये, नशा छोड़िये, नशा छोड़िये, जीने की तरफ रुख मोड़िये, रुख मोड़िये। इंजै्क्शन चिट्टा लेने वालो तुमको मौत बुरी तरह तड़पायेगी , ये नशे की आदत क...

एक अदद मास्क ।

एक अदद मास्क। आज शस्त्र संपन्न विश्व है निःशस्त्र वायरस फैला सर्वत्र । संपन्न हो या दरिद्र,  एक है दोनो के प्रति इसका चरित्र । विश्व ने साबित किया चीनी अक्रांता, क्या इटली ,जापान ,स्पेन  अमेरिका  सबकी जाने ये लील रहा । भारत में भी है तांडव को आतुर , सुध ले लो तुम इसकी  हो जाओ इसके लिए निष्ठुर । निर्देश सरकार के मानो , कर्फ्यू लॉकडाउन का महत्व जानो, अनुशासन को अपना लो, हाथ साबुन से धोकर, सोशल डिस्टैंस बना लो , बचाव मे ही बचाव है ,  इसलिए  घर पर रहकर खुद को बचा लो। स्वघोषित  शक्तिशाली तुम आत्मघाती न बनो, अदृश्य दुश्मन के सामने तुम बलशाली न  बनो, योद्धा हो तो दो चतुरता का परिचय, कुछ वार  सहकर न करो विस्मय। विज्ञान न ढूंढ ले जब तक कोई दवा वैक्सीन, हृदय में आत्मदृढ़ता का सृजन कर करो दुआ कि रहे आमीन ! उपलब्ध साधनो को शस्त्र बना लो, अस्थाई ही सही कुछ तो ढाल बना लो। कि न फैल सके करोना संक्रमण , चाहते हो अगर कि करें हम भी इस पर आक्रमण , तो है जो तुम्हारे पास एक हथियार , सही से प्रयोग करो इ...

आजकल हम कुछ खुश रहने लगे हैं......

आजकल हम कुछ खुश से रहने लगे हैं , उनसे नहीं शिकायत हम कहने लगे है। चुप जो थे हम  गमों को लेकर अरसे से, जिक्र कर उनसे हम बेफिक्र रहने लगे हैं । किसी बात की नहीं हम ढूंढते अब वजह, यूं ही अब हम बेवजह खोये रहने लगें हैं। न कोई गिला किसी से न कोई रंज ए दिल, हम तो यूं हीं बेख्याली में डूबे रहने लगे हैं। कभी जो थे देखकर अपनी खुशी में  खुशी उनसे मिलके दूसरों के लिये  जीने लगे है। #पवन कुमार वर्मा  13 मई 2020

नर्स

आज, घिन्न है इंसानो को इंसानो से, सुखो में भी साथ नहीं रहता कोई , लिबाजो से तय होती है इज्जत , जख्मो को कुरेदता है हर कोई।  कोई घायल हो या बीमार  पड़ा रहता है गरीबखानो में , पुलिस छोड़ भी दे अगर अस्पताल , तो भी परिजन करते हैं केवल इंतजार , अस्पतालो की किसी फर्श पर दिन ढल जाते है , जिदंगी चैन से न हुई ,   मौत तो सूकुन की मिले , जिंदगी जिल्लत में गई , आखरी वक्त तो इज्जत मिले, दर्द में विचार ये दिल में भर जाते है। तब एक हाथ आगे आता है , किसी फरिश्ते कि तरह ,  जख्मों पर मरहम कर ,  दवा पट्टी करता है ,  डाक्टर साहब करते हैं जो चैकअप व ट्रीटमैंट, इंपलीमैंट यही करता है। लिबाजो का फर्क नहीं समझता, एक हाथ से ही सबका इलाज कर देता है। मौत की आस से उठा कर जिंदगी कि किरण जगा देता है । याद रखियें  यह केवल हाथ नहीं होता , ये भी इंसान होता है , जो करता है सेवा निस्वार्थ भाव,  जिसके हम न पिता है न पुत्र लगते है। फिर भी निभा जाता है पिता ,पुत्र, बहन जैसे फर्ज । और चिता हो चुके इंसान को कर देता है स...

देव बथिंदलु स्तुति

जय हो देवा मेरै बथिंदलुआ. ............ जय हो देवा मेरेै बथिंदलुआ, महाराजया मेरे ओ शाटकया। माता भगवती बोलू तां-साथे, तेरे पूजा  करू  जियु  क देवा ।। उंदे के बोलू सतलुज रा किनारा , उबड़ा तैरा मंदिर प्यारा। बांका अ तेरी भज्जी रा नजारा , गानवीं-पलग स्थान न्यारा।। पालकी रा तेरी नजारा शोपटा,चार भाये नचाओ जियु लबदा।  चालो जौ गूर रा शांगल चिमटा ,बाजौ ढोल नगाड़े हरणशिंगा । तेरै पंच बैठे बोलौ परमेश्वरो री, फैसले देओ माछ रे हक दै। जय जय कार  कुर्बाण करो ,तेरे नाओं जप य आवहान् करो।। अर्जो करु आपणेै दुःख तेरेेै द्वारेै, दुःख सुख लो शुणी तू म्हारे। बाट जे तू जीवणै रे दिखा , छोटू समझय माफ कर पाप म्हारे।। किरपा करे राखे तू उम्र सारी, हरे ल म्हरी सारी हारी बमारी। शक्तेै दे तू जियु दे लड़ने कै, सरीकौ न राखी उम्र ज्यूंदे सारी ।। जय हो देवा मेरै बथिदलुआ , महाराजया मेरै ओ शाटकया। माता भगवती बोलू तां-साथे, भूल चूक सारी माफ चाऊ देवा।।                               ...

निशा-पवन

।। निशा-पवन ।। दूर क्षितिज,ढलते सूरज की ज्योति शिथिल, सांझ उतरी वसुधा पर ओढ़े तिमिर। दिन की लाली  हुई  लुप्त  , निशा बावली है  आगंतुक।  खग-विहग दुूबके शाखों में , निशाचर निकले विश्रामों से। नगरो का शोर चला मंद मंद , बजने लगे पूजा के शंख घंट, सांझ बावली हो चली,  वो  मंद मंद निशा हो चली । तपती दोपहरी लू अब प्राणघाती न लगे, ये सांझ पवन अब निशा संग बहने लगे, ज्यों ज्यों निशा  बिखेरने लगे पंख, प्राण-वायु,  देती सीने को ठंड। वो दिन में जो जाने लील चुकी, लू थी तो किसकी जान बख्शी ? उषा की प्राणवायु  , दिन की लू होकर पाये कलंक, ज्यों निशा हुई संग, पवन होने लगी निष्कंलंक । आसमां के चंद्र संग टिमटिमाते रहे तारे,  इधर वसुधा पर निशा संग पवन गोते मारे, निशाचर है बेफिक्र,प्रकृति है बिल्कुल शांत, नगर-कस्बे-शहर मौन ,दिन में होते जो अशांत। आओ इस मौन में निशा के गीत सुने, गुनगुनाती पवन,के अधरो की प्रीत सुने। निशा संग विहार गीत गा रही पवन , आओ  इनके मिलन गीत सुने । आज जब रिश्ते हो गये बंधन, क्या ...

कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही.......

कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही....... कुछ ख्वाब अधूरे रहने सही है जिंदगी में , जरुरी तो नहीं ये कि हर ख्वाहिश पूरी मिले।।....1 कुछ न होकर साथ चले जब बेवक्त राहगीर, जरुरी तो नहीं ये कि हर दिल से दिल मिले।।.....2 अगर हम लफ्जो में कहें कि बुरे हेै वो हमसे  , जरूरी तो नहीं ये कि वो  यूं हमारे जैसे मिले।।....3 जाने कितने मिलते हेैं गैरो की खुशी में दुखी , जरुरी तो नही ये कि हर खुशी मे खुशी मिले।।....4 कैसे कहूं कि दौलत में हैं छुपी  खुशियां सारी, कमबख्त कोई दौलत ठुकुरा कर हमसे मिले।।...5 #पवन कुमार वर्मा । अप्रैल 2020

शांति संदेश

शांति संदेश ।। युद्धभूमि है सुनसान पड़ी ,फिर भी युद्ध है आज, ना कुरु भूमि पर कोई खड़ा , न विश्व युद्ध है आज, न सीमा तोड़कर गोलियां चली है,  न गृह युद्ध है,न किसी से दुश्मनी है। सड़के सुनसान , शहर वीरान है , आखिर क्यों है बाद समर, से हालात। इंसान क्या भूल गया बनाना वह हथियार, या आशियानो में कैद होना है छोटी बात । न कोई पार्थ है, न दिया किसी ने कृष्ण संदेश , तो क्यों नतमस्तक हो, क्यों पंच परमेश्वर के पेश । कहां गया वह विज्ञान , कहां गये सारे अविष्कार, घोषित हो जिसके बूते तुम सकल जग के तारणहार। क्या भूल गये विद्या सारी या भूल हो गई कोई भारी, क्यों निरुत्तर हो गये तुम फैलने पर एसी महामारी। अब ढूंढ क्यों नहीं लेते कोई इंजेैक्शन कोई वैक्सीन , पीड़ा न होती लाखो मरणासन्न देख कर ?  या शब्द शेष है केवल "आमीन !" होती है सभी को पीड़ा होती है , प्रकृति हो या कोई सजीव , सहने की सीमा होती है , जब लांघ जाये कोई सीमा पार , तो कौन रोक सकता है विनाश । कितना छीना है आज तक मां प्रकृति से ,  लौटाया कितना है, कितना किया पर्मारथ , कितने निर...

हम थे कुछ भी नहीं .......

हम थे कुछ भी नहीं ....... हम थे कुछ भी नहीं मगर उसने हीरा कह दिया, खाक थे जो  फर्श के एक लफ्ज ने अर्श कह दिया।  सोचा न था के हमें होगी एसे उनसे  दिल्लगी कभी,  साथ ही मिला कुछ एसा के हमने  इश्क कह दिया। वादें इकरार जो हुए चाहे न हुए  पूरे  दिलो के कभी, मगर साथ रहा कुछ एसा के हमने वफा कह दिया । तकरारो का क्या वो तो हुई इश्क मे उनसे भी बहुत, मगर पास थे वो हमारे तो हमने  इकरार कह दिया। कब्जा करने की आदत न थी हममे गैरो को कभी, वो देख ही गये कुछ एसा के हमने अपना कह दिया। जितना भी रहा जब तक रहा साथ हमारा  प्यारा था, सोचता हूं क्या नाम दूं तो एक पन्ना अधूरा कह दिया। आज पास नहीं है  फिर भी जिंदा है वो हरकतो में हमारी, जिंदादिली सीखा गये जो हमने उसे ज्योति कह दिया।।   # पवन कुमार वर्मा।

नाईट मुंशी

"नाईट मुंशी"  महीना बीत गया है रात्रि सेवा देते देते, इंतजार है कोई सुध तो ले , तुम पूछोगे ये रात्रि सेवा क्या है , बस जान लो इंसान छोड़ पिशाच होना है ।  सो हो गया हूँ मैं भी अब पिशाच सा ही, रोज शाम सुबह होती है शुरु होती है रात्रि चर्या ,  निशाचरो सा भटकता तो नही,  लेकिन एकटक रहता हूं रात भर, जाने कब कहां से कौन सी खबर आ जाये , यहां कोई इंसान या प्रेत नही बल्कि टेलीफोन की एक घंटी  मचा देती है तहलका रात भर, कदाचित तोड़ देती है रात का सन्नाटा, फिऱ भी पिशाच तो पिशाच ही है , एकपल भी आंख नही मूंदता, साक्षी है ये रातो के चारो पहर के ढलने का , जो अक्सर अकेला रहता है रात भर । लेकिन एकमात्र नहीं है , मौजूद है एसा ही एक पिशाच आज हर थाने में , कुछ दिनो की बात हो तो ठीक है पिशाच होना  , लेकिन महीने हो जाये तो इंसानी आदते दूर होने लगती है, प्रेत योनी की तरफ अग्रसन होने लगती है जिंदगी, भयवाह लगने लगता है उजाला, एसे ही उजाले से महीने दूर हो गये है मुझे भी, इससे पहले की डराने लगे मुझे यह उजाला , कहीं बन न जाउं इंसान होकर भी पिशाचो सा, ए...