।।गुरु वंदना।।
मेरा क्या है मुझमें जो मैं अभिमान करूं ,
बनाया जिसने मुझे उस गुरु को प्रणाम करूं।
चित के द्वार चिंतन सीखाया जिसने,
मनोभावों पर मंथन बताया जिसने,
बात उसी की आज मुझमे है।
मेरे गुरु की छवि ही मुझमे है।
तुम कहो के मै गुणवान बन जाउं,
तुम कहो के मै महान बन जाऊं,
गुरू आशीष तो हो साथ मेरे,
तो पहले मै इंसान तो बन जाऊं।।
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