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नाईट मुंशी

"नाईट मुंशी"  महीना बीत गया है रात्रि सेवा देते देते, इंतजार है कोई सुध तो ले , तुम पूछोगे ये रात्रि सेवा क्या है , बस जान लो इंसान छोड़ पिशाच होना है ।  सो हो गया हूँ मैं भी अब पिशाच सा ही, रोज शाम सुबह होती है शुरु होती है रात्रि चर्या ,  निशाचरो सा भटकता तो नही,  लेकिन एकटक रहता हूं रात भर, जाने कब कहां से कौन सी खबर आ जाये , यहां कोई इंसान या प्रेत नही बल्कि टेलीफोन की एक घंटी  मचा देती है तहलका रात भर, कदाचित तोड़ देती है रात का सन्नाटा, फिऱ भी पिशाच तो पिशाच ही है , एकपल भी आंख नही मूंदता, साक्षी है ये रातो के चारो पहर के ढलने का , जो अक्सर अकेला रहता है रात भर । लेकिन एकमात्र नहीं है , मौजूद है एसा ही एक पिशाच आज हर थाने में , कुछ दिनो की बात हो तो ठीक है पिशाच होना  , लेकिन महीने हो जाये तो इंसानी आदते दूर होने लगती है, प्रेत योनी की तरफ अग्रसन होने लगती है जिंदगी, भयवाह लगने लगता है उजाला, एसे ही उजाले से महीने दूर हो गये है मुझे भी, इससे पहले की डराने लगे मुझे यह उजाला , कहीं बन न जाउं इंसान होकर भी पिशाचो सा, ए...

कुछ तो असर होता है लम्हो का भी शख्सियतो पर ,

  कुछ तो असर होता है ........            कुछ तो असर होता है लम्हो का भी शख्सियतो  पर , यूं ही हर शख्स पर हर एक बात असरदार नहीं होती।। मेरी बेरुखी पर भी जो सजदा करे खुशी के लिए मेरी , कैसे कह दूं कि जिंदगी मे कोई पहरे दार नही होती। मुख्तलिफ होकर भी जब कोई नाम सिर्फ मेरा पुकारे,  तो कैसे कह दूं  वफा में हमसफर पतवार नहीं होती।  जब दिल में उतर गया हो या दिल से उतर गया कोई, एक बार होती है वफा या बेवफाई बार बार नहीं होती। ये जिंदगी मिली है किराये पर तो कुछ कद्र कर लो, इस तरह  मुलाकाते अच्छो से हर बार नही होती।।। #पवन कुमार वर्मा। @21/11/2019

तुम हो कहीं मेरी आंखो में ख्वाबों में .......

तुम हो कहीं मेरी आंखो में ख्वाबों में ....... तुम हो कहीं मेरी आंखो में मेरे ख्वाबो में क्यो हो तुम ही मेरी बातो में जज्बातो में।...1 भूल जो गया हूं तुमको मैं दिल से अपने,  फिर क्यो जिंदा हो मेरी यादो में रातो में।....2 मुझे फिक्र नही है तुम्हारी परवाह नही है, तो क्यों हो फिर भी तुम मेरे सवालातो में।....3 कितना सोचता हूँ के कहूं कुछ तुम्हे बुरा। फिर क्यों जिंदा हो तुम तारीफो में बातो में।...4 बहुत कोशिश की तुम्हें ख्वाबो से मिटाने की, जाने क्यो फिर भी बने रहे तुम ख्यालाते में।।..5 - प व न # पवन कुमार वर्मा ।

गुरु वंदना

।।गुरु वंदना।। मेरा क्या है मुझमें जो मैं अभिमान करूं , बनाया जिसने मुझे उस गुरु को प्रणाम करूं। चित के द्वार चिंतन सीखाया जिसने, मनोभावों पर मंथन बताया जिसने, बात उसी की आज मुझमे है। मेरे गुरु की छवि ही मुझमे है। तुम कहो के मै गुणवान बन जाउं, तुम कहो के मै महान बन जाऊं, गुरू आशीष तो हो  साथ मेरे, तो पहले मै इंसान तो बन जाऊं।।

भैया दूज

।।भैया दूज।। प्यारी बहना! किसके लिये रखा है तुमने उपवास, सजाई है किसके लिये पूजा कि थाली, कौन हमउम्र है वो फैला रहे जिसके लिये, तुम खुदा के दर पर झोली। प्यारी बहना! ये रोली यो टीका ये मिठाइ ये धूप, ये किसके लिये कर रहे हो अन्नत्याग, जानते हो क्या उसे तुम, जिसकी उम्र की कामना के लिये कर रहे तुम परित्याग। प्यारी बहना! जान तो लो जिसे तुम भाई कहते हो, तुमको वो बहन कहता है, मगर तुम्हारे जैसी को बेरहम कहता है, उसे कोइ हॉट कोइ पटाखा तो कोइ बॉम दिखती है, हर लडकी देखकर उसकी आंखो में कामुकता छलकती है। उसे परवाह नही रहती है कोइ, उसे तो बस नजरो से भी प्यास बुझानी है, चाहे डरकर सहम जाये वो युवती, उसे तो बस उसकी इज्जत उछालनी है। प्यारी बहना! तुम्हारी तरफ कोइ आंखे उठाये उसकी आंखे फोड सकता है वो, माना तुम्हारे लिये जान भी दे सकता है वो, लेकिन तुम्हारे जैसी युवती को जाने क्यो खिलौना समझ बैठता है वो। क्यो हर लडकी को हवस भरी नजरो से देखता है वो,  एसा नहीं कि किसी ने किया न हो उसका प्रतिकार, लेकिन तौहीन समझता है वो इसे अपनी शान की , कामुकता को ही मर्दानगी समझ बैठता ...

कदम बोलते है।

कदम बोलते है।। कदम बोलते है कर्मभूमि चूमकर, गगन गूँज कर, सूरज तपन, घन गर्जन, खूँखार तड़ित में भी नहीं रुकते,  कदम उठते है धूल पत्थर कीचड़ मे भी क्योंकि कदम बोलते है एक जवान की भाषा। विकट विपदा हो या घोर आपदा चाहे संकट हो तन मन धन पर जब भी, दुश्मन हो बलवान चाहे  पहाड़ खड़े हो सामने मुसीबतो के जब भी, साहस भरा होता है सीने में  आशा होती है पार लगने की तब भी,  क्योंकि कदम नहीं रुकते, कदम बढ़ते हैं  और बोलते है जवान की भाषा। कितना भी रोक लो उठते कदम नहीं रुकते, कट जाते है शीश फिर भी कदम नहीं टूटते, क्योंकि सीखा है कदमो ने केवल उठना, सीखा है नामुमकिन को मुमकिन करना, हार, जीत में बदलना भी मुमकिन है  कदमो की झंकार से,  कदमो का उठना भी स्वभाविक है , जिगर की हुंकार से, कदमो का उठना मजबूरी नहीं साहस है सीने का, कदमो का बढ़ना दौड़ नहीं उत्साह है जीने का, जवानो का जीतना,  चीत्कारो के बीच से जीत को खींचना,  कदमो की दृढ़ता है, जवानो की वीरता कदमो की अटलता है, जवानो का मौन, मौन नहीं सहजता है,  क्योंकि जवा...