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कदम बोलते है।

कदम बोलते है।।


कदम बोलते है कर्मभूमि चूमकर,
गगन गूँज कर, सूरज तपन, घन गर्जन,
खूँखार तड़ित में भी नहीं रुकते, 
कदम उठते है धूल पत्थर कीचड़ मे भी क्योंकि
कदम बोलते है एक जवान की भाषा।

विकट विपदा हो या घोर आपदा
चाहे संकट हो तन मन धन पर जब भी,
दुश्मन हो बलवान चाहे 
पहाड़ खड़े हो सामने मुसीबतो के जब भी,
साहस भरा होता है सीने में
 आशा होती है पार लगने की तब भी, 
क्योंकि कदम नहीं रुकते, कदम बढ़ते हैं 
और बोलते है जवान की भाषा।

कितना भी रोक लो उठते कदम नहीं रुकते,
कट जाते है शीश फिर भी कदम नहीं टूटते,
क्योंकि सीखा है कदमो ने केवल उठना,
सीखा है नामुमकिन को मुमकिन करना,
हार, जीत में बदलना भी मुमकिन है
 कदमो की झंकार से, 
कदमो का उठना भी स्वभाविक है ,
जिगर की हुंकार से,

कदमो का उठना मजबूरी नहीं साहस है सीने का,
कदमो का बढ़ना दौड़ नहीं उत्साह है जीने का,
जवानो का जीतना, 
चीत्कारो के बीच से जीत को खींचना, 
कदमो की दृढ़ता है,
जवानो की वीरता कदमो की अटलता है,
जवानो का मौन, मौन नहीं सहजता है, 
क्योंकि जवान  नहीं कदम बोलते है,
 एकता की भाषा,एक भाषा, 
कदम बोलते है  जवान की भाषा॥॥..........


-पवन_कुमार_वर्मा।
3जून 2017

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