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स्त्री वेदना

-स्त्री वेदना

 

यहां पित्तृ-सत्ता समाज में

एक औरत का जब जन्म हुआ ।

मां बाप के किये दान में

उस बेटी का वर्चस्व खत्म हुआ ।

बाल उम्र में परिणय देखा,

बंधन बचपन से शुरु हुआ।

 सिंदुर पिया का, हार ,कंगन ,

हर श्रृंगार पिया के नाम हुआ।

आशीष मिला तो सदासुहागिन ,

वो भी पिया के नाम हुआ ।

क्या अपराध  किया,

ये कि नारी का जन्म लिया ?

या कोई शाप रहा जो फलित हुआ।

 

हुआ गर्भ तो भी

100-100 व्यंग्य वार सहे,

हुई बेटी गर तो ,

घर छोड़ने को यह तैयार रहे ।

न साथ रहा पिया का ,

इस मां जाने क्या-2 कष्ट सहे।

लाख व्यंग्य सुन उसने,

फिर भी कन्या को जन्म दिया ।

 

(फिर क्या हुआ)

 

न दीप जले , न गीत चले,

न उत्सव घर पर कोई हुआ ।

अंधेरा रहा दिन में भी,

बेशक घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ।

हिम्मत कर औऱत ने

प्रश्न , पिया से पूछ लिया ।

आखिर क्यों न बेटी चाहते हों ?

देखो ये कली सा मुखड़ा ,

क्यों इससे इतराते हो।

 है कुछ शंका तो बताओ,

क्यों फर्ज से भागते हो ।

कोई डर है तो मैं तुमसे

एक वादा करती हूँ।

इसके हिस्से में बद्दुआएँ हैं गर ,

लेने का मैं इरादा करती हूँ।

लेकिन

न  पिया ने कोई जवाब दिया ,

हर बात को दरकिनार किया ।

 

कत्ल कर दो गर इतना ही,

बेटी से घबराते हो,

गुस्सें में बोल रही मां ममता में पागल थी ,

बेटी को न मिला हक जैसा वो चाहती थी ,

इधर कुंठित मन से बैठा पिया,

सोच रहा , ये कैसी  विपदा आन पड़ी थी,

बोला

 

ओ प्रिये ,

कैसे पालूंगा ,

 दुसरे घर की इस दौलत को ,

क्या बोझ नहीं होगी ये ,

इस घर के चूल्हे चौके को,

कैसे मैं संभालूंगा,

उठते समाज की उंगली को ,

कि मर्दाना ताकत नहीं मुझमें,

क्या बेटा पैदा करने को।

 

चलो चलो

फिर भी बात मान लेता हूँ ,

जिम्मेदारी इसकी मैं संभाल लेता हूँ ।

मगर, तुम कहती हो कली जिसे , 

इसे कैसे मैं संभालूंगा ,

पग-पग हवस भरी नजरों से,

इसे कैसे मैं  निकालूंगा ।

शादी भी करवा दूंगा ,

पर कैसे मैं कर्ज चुकाउंगा।

अब तुम ही बताओ ,

इतना दहेज कहां से लाऊंगा ।

 

इतने शंका प्रश्न लेकर

पिता का बोलना वाजिब था ,

मान भी लेता बात

मगर, पत्नी के

सिर पर भी तो घूंघट था,

झुके सिर मान रहा वो अब तक

रुढियों में जो सुसंगत था ।

कैसे करता फैसला ,एक पल में ,

समाज जब उसके विरुद्ध था ।

इधर

बहस में नन्हीं कली की नींद खुली,

वह परी सी, जिसकी किलकारी गूंज उठी,

हंसती, खेलती , इस मासूम ने,

दोनों का ध्यान खींच लिया ,

एक  मंद मुस्कान पर पिता ने फैसला,

भारी मन से उसके हक में कर दिया।

 

कालचक्र में ,

बसंत, बहार व पहाड़ो संग वह  बड़ी हुई,

सामाजिक  कुरीतियों में रही जकड़ी हुई,

प्रकृति के सिवा न किसी ने साथ दिया,

उसका पढ़ना भी न किसी ने  मंजूर किया,

कभी रास्ता रोका ,

कभी किताबो , कपड़ो से वंचित किया ।

 

पग-पग पांव बंधी रही जंजीरे,

लांघ न लें वह घर की मुंडेरें ।

समाज ने कहां उसे आजाद रखा,

हुई पंद्रह  की तो विवाह प्रस्ताव रखा।

आकर अब गृहस्थी संभाले ,

काफी हुई पढ़ाई अब चूल्हा चौका संभाले।

ज्यादा पढ़ाई नहीं इसके हक में ,

आकर यह परिवार की रीत संभाले।

 

वह किसे बताती की वो पढ़ना चाहती थी ,

पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती थी ।

किंतु

बेटी का पढ़ना कहां समाज को पसंद था,

स्कूल जाना बेटियों के लिये यहां बंद था।

 वही जाने क्या क्या वह सहती रही,

रीतियों के कुचक्र में वह पिसती रही ।

फिर भी

जितना मौका मिला ,

उसने संभाल लिया ,

समाज की हर परीक्षा में

खुद को अव्वल किया ।

 

छुप-छुप कर वह मैहनत करती,

अपने सपनो के लिये वह लड़ती ,

किस्मत ने भी एक दिन साथ दिया,

उसने पुलिस भर्ती टैस्ट पास किया,

तब भी

मां बाप संग कहने लगे रिश्तेदार ,

लड़िकियां कहां पुलिस में होती है ।

यह लड़को के लिये है नौकरी ,

लड़कियों में कहां इतनी हिम्मत होती है ।

 

हौंसला कर

मन में स्वीकार किया ,

न बदलेगा कुछ भी,

गर उसने आज न प्रतिकार किया ।

 

जिसको जो करना है कर लें,

आज मौका है तो साबित करुंगी ,

मां असफल हुई तो भी न डरूंगी।

जिसको करना है वह करे उपहास ,

मुझे मेरे कर्म पर है पूर्ण विश्वास ।

मैं लड़ूंगी अब हक के लिये ,

आखिर मेरे भी तो है अधिकार,

मैं कठपुतली नहीं ,

मेरे जीवन का भी है स्वतंत्र आधार।

फैसला उसने कर लिया ,

अपने हक के लिये लड़ना शुरु कर दिया।

यह घटना आम नहीं ,ऐतिहासिक हुई ,

परिवर्तन धारा अब बहनी शुरु हुई ।

संग कुछ बेटियां व

सरकारे भी धीरे धीरे साथ हुई ।

नई – नई पहलो पर बात हुई ,

महिला उत्थान के लिये,

हुए सैंकड़ो हजारों प्रयास।

बेटी बचाओ –

बेटी पढ़ाओं उद्गघोष तले

रुढिओं से स्वतंत्र हो रहा आज समाज।

 

साक्षरता ,सजगता का

 परिणाम हुआ

सेना, पुलिस , सरकारो में

महिलाओं का मुख्य स्थान हुआ ।

 

लेकिन साक्षरता न जहां पहुंच सकी ,

वहां आज भी है कुरीती व कुप्रचार ,

महिलाओं को न हैं अब तक अधिकार,

शायद अब तक न हुआ हो वहां प्रतिकार ,

तो क्यों सुनेगा कोई नारी उत्थान की बात ।

 

ए जन्मदात्री ,

तरुणी ,तनुजा,  ओ परिणीता ,

जिस भी रुप में हो तुम ,

 तुमसे आवाहन करता हूँ ।

देश समाज हित के लिये

नारी उत्थान की बात करता हूं।

उठो जागो और

अधिकारो की बात करो।

बांधती हो जो तुम्हे , उन

कुरीतियों पर प्रहार करों ।

गर शंका है तो

अपना समृद्ध इतिहास पढ़ो,

खुद को कमजोर न बनाओ

न शोषण स्वीकार करों ।

ये देश तुमसे है , जग तुमसे है ,

तुम्ही से मैं हूं ,

तुम्ही से है मेरा भी परिवार,

मैं चाहता हूँ, कि

तुम भी बनो देशोन्नति में भागीदार ,

मगर इसके लिये जरुरी है , कि

जान लो तुम अपने सभी अधिकार,

जान लो तुम अपने सभी अधिकार ।।

  

-प व न

#पवन कुमार वर्मा ।   

08 फरवरी 2021                                    

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