Saturday 12 March 2022

एक तुम हों, एक हम हो

।। गीत ।।


चाहतें , कम न हो ।
बातें , खत्म न हो।
एक तुम हो , 
एक हम हों,
न कोई गम हो ,
जब तुम संग  हो।

मैं कहूं तुमको , तुम सुनो न,
मैं देखू जरा , तुम रुको न । 
एक बार, 
कह दो न।
तुम मेरे ......हो। 


मैं चाहुं तुम्हें , तुम चाहो न ,
एसा बनें, इक आशियां ।
न छूटे साथ ,
हो ये कि,
तुम मेरे.......... हो ।,


कम न हो , ये मुहबत्तें , 
यादे कभी खत्म न हो,
लम्हों की 
डोर कहे न ,
तुम मेरे..... हो। 



पर्दे न हों , न हो जुदां,
दूरियां न हो दरमियां।
बातें हों, 
नजरो से, के
तुम  मेरे .....  हो।
एक तुम हो , 
एक हम हों, 
न कोई गम हो ,
जब संग  तुम  हो।


-   पवन कुमार वर्मा " प व न "
     12.03.2022

Monday 29 March 2021

मुहबत्त के रंग

"मुहब्बत के रंग"

                                          (1)

आस पास घना अंधेरा था । बिजली चमकने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जिसकी कड्कडाहट में रेन शैल्टर पर बैठा रोहन अकेला सिर्फ और सिर्फ प्रेरणा को ही याद कर रहा था । आखिर एसा कैसे हो सकता है जिस लड़की के लिये मैने दिन, रात कुछ नही देखा वह इस तरह आज नजर अंदाज कैसे कर सकती थी । उसे मेरे साथ एसा नहीं करना चाहिए थाएसे न जाने कितने सवालों के घेरे में डूबा रोहन अपने चेहरे को एक हाथ से सहारा देते हुए बैठा था । रोहन कि आंखे भर आई थी और एकटकी लगाये बैठा सामने वाले खंबे को देख रहा था । अचानक से फिर बिजली चमकी और बादलो में गिढगिढाहट हुई । जिसने रोहन के मायूस चेहरे को चौंका दिया । वह अचानक उठ खड़ा हुआ और अपनी आंखे पोंछते हुए आस पास देखने लगा । रात के अंधेर में कुछ भी दिखाई न दे रहा था । उसने जेब से अपना फोन निकाला और कॉंटेक्ट लिस्ट टटोलने लगा । फोन पर एक सुंदर सी फोटो के साथ नाम शो हुआ “PRERNA”, यही तो थी रोहन की प्रेरणा । प्यारी सी मुस्कान के साथ दोनो कॉंटेक्ट प्रोफाईल फोटो में बहुत सुंदर लग रहे थे । फोटो ज्यादा पुरानी नहीं थी लेकिन जब एक दूसरे के लिये प्यार व समर्पण हो तो सभी रिश्ते सुंदर लगते हैं रोहन की गर्दन को साइड से दोनो हाथो से घेरे हुए दोनो एक दूसरे को इश्क भरी नजरो से देख रहे थे रोहन का एक हाथ कंधे पर बैग पकड़े हुए था और दूसरा प्रेरणा की कमर को घेरे हुए फोटो में साफ नजर आ रहा था । दोनो पूरी तरह से इश्क के रंग में रंगे नजर आ रहे थें । इसे देख कर रोहन सीये होठों से हल्का सा मुस्कुराया रोहन की आंखे फिर भर आई थी । आंखो में सैलाब आने को तैयार था, चहरे का रंग पूरी तरह उतर चुका था। रोहन ने मोबाईल फोन में बैक क्लिक की और प्रेरणा को कॉल करते हुए एक सैकेंड बाद  ही फोन काट दिया । वह असंमंजस में था बहुत सारी शिकायते मन में आ रही थी उसे दिल पर खुद का भी एक बोझ सा महसूस हो रहा था । बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन मन में इतना गुस्सा भर गया था कि समझ नहीं आ रहा था क्या करें । उसने एक बार फिर प्रेरणा का नम्बर डायल किया और फिर एक सैकेंड बाद काट दिया । मन में गुब्बार सा भर गया था । उसे देख कर लग रहा था कि वह रोना चाहता है परंतु इस समय कोई सहारा भी तो न था जिसके पास वह अपने दर्द को बहते अश्को के साथ ब्यां कर सकें । काश इस समय कोई कंंधा होता जिस पर सिर रख कर वह खुद को संभालता । खैर रोहन ने उठते हुए आपनी आंखो को पोंछा और एक कदम आगे बढाते हुए खुले आसमान के नीचे बांहे फैलाकर रुंधे हुए गले से चीखते हुए कहने लगा । 

ए चांद, तारो, 
 आओ देखो मेरी मुहब्बत की कहानी, 
मैं वो तारा हूं जो कभी चमका ही नहीं । 

सुन रहे हो न । मैं वो तारा हूं जो कभी चमका ही नही। आज फिर उसने मेरी मुहब्बत को नजरअंदाज कर दिया है । लेकिन मैं भूलूंगा नहीं उसकी किसी भी बात को । देखता हूँ कब तक मुझे दरकिनार करती रहेगी । मेरी मुहब्बत इतनी फीकी भी नहीं के उस पर असर न हो । धीरे धीरे मंद अवाज की तरफ बढते हुए रोहन अपने आप से बहुत कुछ कह रहा था । उसे अभी तक पता नहीं चल पाया कि प्रेरणा ने उसे नजर अंदाज क्यों किया । यह वही प्रेरणा थी जो रोहन के लिये जान की बाजी लगा देने की बात करती थी । खैर, प्रेरणा के बारे में हम अगले अंक में जानेंगे । 

इतने में रोहन को ख्याल आया । ओह !  वह घर पर अपनी बहन से झूठ बोल कर निकला था । उसने अपनी कलाई में घड़ी में टाईम देखा तो 12 बजने वाले थे । उसने खुद को संभाला और अपनी बहन को फोन करते हुए कहने लगा, बच्चा मैं आ रहा हूँ , नये शहर में रास्ता भटक गया था । लेकिन अब सीधा घर आ रहा हूँ । .............1  

Monday 15 March 2021

पांडे जी की मूछें ।

 

।।पांडे जी की मूंछे ।।


पांडे जी , पांडे जी ,
मूछें आपकी बेहरम सी,
एक , रौब मूंछो का ,
दूजी गर्मी वर्दी की ।
पांडे जी , पांडे जी ,
मूंछे आपकी बेहरहम सी ,

 

 
चले तो, हाथी सी चाल हैं ,
बोले तो, सिंह सी दहाड़ है,
वर्दी का है नशा बड़ा ,
पांडे जी कि
मूछें कमाल है।
पांडे जी , पांडे जी ,
मूछें आपकी बेहरम सी,

 

 

देखें तो , Ak47 सा वार है,
उठें तो, मूंछो में भी धार है।एक ताव पर लाखो घायल,
पांडे जी की
मूछें  हथियार है।
पांडे जी , पांडे जी ,
मूछें आपकी बेहरम सी,
 

 

नजर न लगे इन मूंछो को  ,
रखना संभाल के पांडे जी ,
मूछें आपकी का ति ला ना ,
न करना गुमान ,
पांडे जी , पांडे जी ,
मूंछे आपकी बेरहम सी ।
एक , रौब मूंछो का ,
दूजी गर्मी वर्दी की ।
पांडे जी , पांडे जी,
पांडे जी, पांडे जी ।।

 

-         पवन कुमार वर्मा ( प व न )
        12 मार्च 2021

Monday 8 March 2021

क्या से क्या हो गया हूँ मैं,

।।गीत।।

 
क्या से क्या हो गया हूँ मैं,
तेरे बिना,
जाने कहां खो गया हूँ मैं ।
 
मेरी जिन्दगी और तन्हा रास्तें,
गम में भी खुश हूं तेरे वास्ते,
मैं अकेला हो गया हूँ ।
तेरे बिना ,

जाने कहां खो गया हूँ मैं ।
 
मेरे जिस्म को चुभती है शामें,
तेरे ख्यालों में कटती है रातें ,
मैं बेजुबां हो गया हूं ।
तेरे बिना,
जाने कहां खो गया हूँ मैं ।
 
गर्द हो गई दीवारो पर तस्वीरें,
गुमसुम हो गई गुजश्ता शामें
मैं बे-जर हो गया हूं,
तेरे बिना,
जाने कहां खो गया हूं मैं ।
 
क्या से क्या हो गया हूँ मैं,
तेरे बिना,
जाने कहां खो गया हूँ मैं ।

 

 

– प व न

# पवन कुमार वर्मा

10फरवरी2021


स्त्री वेदना

-स्त्री वेदना

 

यहां पित्तृ-सत्ता समाज में

एक औरत का जब जन्म हुआ ।

मां बाप के किये दान में

उस बेटी का वर्चस्व खत्म हुआ ।

बाल उम्र में परिणय देखा,

बंधन बचपन से शुरु हुआ।

 सिंदुर पिया का, हार ,कंगन ,

हर श्रृंगार पिया के नाम हुआ।

आशीष मिला तो सदासुहागिन ,

वो भी पिया के नाम हुआ ।

क्या अपराध  किया,

ये कि नारी का जन्म लिया ?

या कोई शाप रहा जो फलित हुआ।

 

हुआ गर्भ तो भी

100-100 व्यंग्य वार सहे,

हुई बेटी गर तो ,

घर छोड़ने को यह तैयार रहे ।

न साथ रहा पिया का ,

इस मां जाने क्या-2 कष्ट सहे।

लाख व्यंग्य सुन उसने,

फिर भी कन्या को जन्म दिया ।

 

(फिर क्या हुआ)

 

न दीप जले , न गीत चले,

न उत्सव घर पर कोई हुआ ।

अंधेरा रहा दिन में भी,

बेशक घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ।

हिम्मत कर औऱत ने

प्रश्न , पिया से पूछ लिया ।

आखिर क्यों न बेटी चाहते हों ?

देखो ये कली सा मुखड़ा ,

क्यों इससे इतराते हो।

 है कुछ शंका तो बताओ,

क्यों फर्ज से भागते हो ।

कोई डर है तो मैं तुमसे

एक वादा करती हूँ।

इसके हिस्से में बद्दुआएँ हैं गर ,

लेने का मैं इरादा करती हूँ।

लेकिन

न  पिया ने कोई जवाब दिया ,

हर बात को दरकिनार किया ।

 

कत्ल कर दो गर इतना ही,

बेटी से घबराते हो,

गुस्सें में बोल रही मां ममता में पागल थी ,

बेटी को न मिला हक जैसा वो चाहती थी ,

इधर कुंठित मन से बैठा पिया,

सोच रहा , ये कैसी  विपदा आन पड़ी थी,

बोला

 

ओ प्रिये ,

कैसे पालूंगा ,

 दुसरे घर की इस दौलत को ,

क्या बोझ नहीं होगी ये ,

इस घर के चूल्हे चौके को,

कैसे मैं संभालूंगा,

उठते समाज की उंगली को ,

कि मर्दाना ताकत नहीं मुझमें,

क्या बेटा पैदा करने को।

 

चलो चलो

फिर भी बात मान लेता हूँ ,

जिम्मेदारी इसकी मैं संभाल लेता हूँ ।

मगर, तुम कहती हो कली जिसे , 

इसे कैसे मैं संभालूंगा ,

पग-पग हवस भरी नजरों से,

इसे कैसे मैं  निकालूंगा ।

शादी भी करवा दूंगा ,

पर कैसे मैं कर्ज चुकाउंगा।

अब तुम ही बताओ ,

इतना दहेज कहां से लाऊंगा ।

 

इतने शंका प्रश्न लेकर

पिता का बोलना वाजिब था ,

मान भी लेता बात

मगर, पत्नी के

सिर पर भी तो घूंघट था,

झुके सिर मान रहा वो अब तक

रुढियों में जो सुसंगत था ।

कैसे करता फैसला ,एक पल में ,

समाज जब उसके विरुद्ध था ।

इधर

बहस में नन्हीं कली की नींद खुली,

वह परी सी, जिसकी किलकारी गूंज उठी,

हंसती, खेलती , इस मासूम ने,

दोनों का ध्यान खींच लिया ,

एक  मंद मुस्कान पर पिता ने फैसला,

भारी मन से उसके हक में कर दिया।

 

कालचक्र में ,

बसंत, बहार व पहाड़ो संग वह  बड़ी हुई,

सामाजिक  कुरीतियों में रही जकड़ी हुई,

प्रकृति के सिवा न किसी ने साथ दिया,

उसका पढ़ना भी न किसी ने  मंजूर किया,

कभी रास्ता रोका ,

कभी किताबो , कपड़ो से वंचित किया ।

 

पग-पग पांव बंधी रही जंजीरे,

लांघ न लें वह घर की मुंडेरें ।

समाज ने कहां उसे आजाद रखा,

हुई पंद्रह  की तो विवाह प्रस्ताव रखा।

आकर अब गृहस्थी संभाले ,

काफी हुई पढ़ाई अब चूल्हा चौका संभाले।

ज्यादा पढ़ाई नहीं इसके हक में ,

आकर यह परिवार की रीत संभाले।

 

वह किसे बताती की वो पढ़ना चाहती थी ,

पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती थी ।

किंतु

बेटी का पढ़ना कहां समाज को पसंद था,

स्कूल जाना बेटियों के लिये यहां बंद था।

 वही जाने क्या क्या वह सहती रही,

रीतियों के कुचक्र में वह पिसती रही ।

फिर भी

जितना मौका मिला ,

उसने संभाल लिया ,

समाज की हर परीक्षा में

खुद को अव्वल किया ।

 

छुप-छुप कर वह मैहनत करती,

अपने सपनो के लिये वह लड़ती ,

किस्मत ने भी एक दिन साथ दिया,

उसने पुलिस भर्ती टैस्ट पास किया,

तब भी

मां बाप संग कहने लगे रिश्तेदार ,

लड़िकियां कहां पुलिस में होती है ।

यह लड़को के लिये है नौकरी ,

लड़कियों में कहां इतनी हिम्मत होती है ।

 

हौंसला कर

मन में स्वीकार किया ,

न बदलेगा कुछ भी,

गर उसने आज न प्रतिकार किया ।

 

जिसको जो करना है कर लें,

आज मौका है तो साबित करुंगी ,

मां असफल हुई तो भी न डरूंगी।

जिसको करना है वह करे उपहास ,

मुझे मेरे कर्म पर है पूर्ण विश्वास ।

मैं लड़ूंगी अब हक के लिये ,

आखिर मेरे भी तो है अधिकार,

मैं कठपुतली नहीं ,

मेरे जीवन का भी है स्वतंत्र आधार।

फैसला उसने कर लिया ,

अपने हक के लिये लड़ना शुरु कर दिया।

यह घटना आम नहीं ,ऐतिहासिक हुई ,

परिवर्तन धारा अब बहनी शुरु हुई ।

संग कुछ बेटियां व

सरकारे भी धीरे धीरे साथ हुई ।

नई – नई पहलो पर बात हुई ,

महिला उत्थान के लिये,

हुए सैंकड़ो हजारों प्रयास।

बेटी बचाओ –

बेटी पढ़ाओं उद्गघोष तले

रुढिओं से स्वतंत्र हो रहा आज समाज।

 

साक्षरता ,सजगता का

 परिणाम हुआ

सेना, पुलिस , सरकारो में

महिलाओं का मुख्य स्थान हुआ ।

 

लेकिन साक्षरता न जहां पहुंच सकी ,

वहां आज भी है कुरीती व कुप्रचार ,

महिलाओं को न हैं अब तक अधिकार,

शायद अब तक न हुआ हो वहां प्रतिकार ,

तो क्यों सुनेगा कोई नारी उत्थान की बात ।

 

ए जन्मदात्री ,

तरुणी ,तनुजा,  ओ परिणीता ,

जिस भी रुप में हो तुम ,

 तुमसे आवाहन करता हूँ ।

देश समाज हित के लिये

नारी उत्थान की बात करता हूं।

उठो जागो और

अधिकारो की बात करो।

बांधती हो जो तुम्हे , उन

कुरीतियों पर प्रहार करों ।

गर शंका है तो

अपना समृद्ध इतिहास पढ़ो,

खुद को कमजोर न बनाओ

न शोषण स्वीकार करों ।

ये देश तुमसे है , जग तुमसे है ,

तुम्ही से मैं हूं ,

तुम्ही से है मेरा भी परिवार,

मैं चाहता हूँ, कि

तुम भी बनो देशोन्नति में भागीदार ,

मगर इसके लिये जरुरी है , कि

जान लो तुम अपने सभी अधिकार,

जान लो तुम अपने सभी अधिकार ।।

  

-प व न

#पवन कुमार वर्मा ।   

08 फरवरी 2021                                    

Wednesday 27 January 2021

ओ भोलेनाथ रे ...

मेरे भोले नाथ !

 

ओ भोले नाथ रे,

नाथो के नाथ, दीनानाथ रे.

मेरे भोले नाथ रे....

करा दो भव से बेड़ा पार रे।...........1

 ओ भोले नाथ रे,

मेरे भोले नाथ रे....

 

ए विषधर, जटाधर, नीलकंठ, दीनबंधु,

हर लो सारे कष्ट मेरे ए श्रीकंण्ठ प्रभु,

हटा दो विपदा के बादल ओ भोलेनाथ रे,

मेरे भोले नाथ रे....

ओ भोलेनाथ रे...

कर दो जीवन खुशहाल, मेरे भोलेनाथ रे ।......2

 ओ भोले नाथ रे,

मेरे भोले नाथ रे....

 

ए अनीश्वर, सदाशिव ओ- शंकर शम्भू,

करो दया मुझ पर ओ दयानिधान प्रभु,

बता दो जीवन का सारए भोलेनाथ रे,

 मेरे भोलेनाथ रे।

ओ भोलेनाथ रे...

करा दो भव से मुक्ति पार, मेरे भोले नाथ रे।......3

ओ भोले नाथ रे,

मेरे भोले नाथ रे....

 


-  प व न
पवन कुमार वर्मा
शिमला, हिमाचल प्रदेश 



एक तुम हों, एक हम हो

।। गीत ।। चाहतें , कम न हो । बातें , खत्म न हो। एक तुम हो ,  एक हम हों, न कोई गम हो , जब तुम संग  हो। मैं कहूं तुमको , तुम सुनो न, मैं देखू ...