।।निशा-पवन।।
दिन की लाली हुई लुप्त ,
तपती दोपहरी लू अब प्राणघाती न लगे,
ये सांझ पवन अब निशा संग बहने लगे,
ज्यों ज्यों निशा बिखेरने लगे पंख,
प्राण-वायु, देती सीने को ठंड।
वो दिन में जो जाने लील चुकी,
लू थी तो किसकी जान बख्शी ?
उषा की प्राणवायु ,
दिन की लू होकर पाये कलंक,
ज्यों निशा हुई संग, पवन
होने लगी निष्कंलंक ।
आसमां के चंद्र संग टिमटिमाते रहे तारे,
इधर वसुधा पर निशा संग पवन गोते मारे,
निशाचर है बेफिक्र,प्रकृति है बिल्कुल शांत,
नगर-कस्बे-शहर मौन ,दिन में होते जो अशांत।
आओ इस मौन में निशा के गीत सुने,
गुनगुनाती पवन,के अधरो की प्रीत सुने।
निशा संग विहार गीत गा रही पवन ,
आओ इनके मिलन गीत सुने ।
आज जब रिश्ते हो गये बंधन,
क्या तुमने देखे है एसे मनमीत,
नफा नुकसान में बन रहे रिश्ते।
न कोई बुनता प्रेम प्रीत, न गाता विरह गीत ।
अठखेलियां जो जारी है इस पहर,
जरूरी है जीवन में , न उठे सिहर ,
नीरस अगर हो चुके,
कभी निकलो प्रकृति में इस पहर , और
सुनो निशा से गुनगुनाती पवन ,
भीतर मन से क्षण भर निहारो ये वन उपवन ,
पल्लवित होगी मन में आशा- किरण ,
नीरस जग में रस का होगा जन्म ,
हृदय में कल्पना पंख प्रस्फुटित करेगी,
निशा-पवन।
#पवन_कुमार_वर्मा।
06 मई 2020
दूर क्षितिज,ढलते सूरज की ज्योति शिथिल,
सांझ उतरी वसुधा पर ओढ़े तिमिर।
दिन की लाली हुई लुप्त ,
निशा बावली है आगंतुक।
खग-विहग दुूबके शाखों में ,
निशाचर निकले विश्रामों से।
निशाचर निकले विश्रामों से।
नगरो का शोर चला मंद मंद ,
बजने लगे पूजा के शंख घंट,
सांझ बावली हो चली,
वो मंद मंद निशा हो चली ।
तपती दोपहरी लू अब प्राणघाती न लगे,
ये सांझ पवन अब निशा संग बहने लगे,
ज्यों ज्यों निशा बिखेरने लगे पंख,
प्राण-वायु, देती सीने को ठंड।
वो दिन में जो जाने लील चुकी,
लू थी तो किसकी जान बख्शी ?
उषा की प्राणवायु ,
दिन की लू होकर पाये कलंक,
ज्यों निशा हुई संग, पवन
होने लगी निष्कंलंक ।
आसमां के चंद्र संग टिमटिमाते रहे तारे,
इधर वसुधा पर निशा संग पवन गोते मारे,
निशाचर है बेफिक्र,प्रकृति है बिल्कुल शांत,
नगर-कस्बे-शहर मौन ,दिन में होते जो अशांत।
आओ इस मौन में निशा के गीत सुने,
गुनगुनाती पवन,के अधरो की प्रीत सुने।
निशा संग विहार गीत गा रही पवन ,
आओ इनके मिलन गीत सुने ।
आज जब रिश्ते हो गये बंधन,
क्या तुमने देखे है एसे मनमीत,
नफा नुकसान में बन रहे रिश्ते।
न कोई बुनता प्रेम प्रीत, न गाता विरह गीत ।
अठखेलियां जो जारी है इस पहर,
जरूरी है जीवन में , न उठे सिहर ,
नीरस अगर हो चुके,
कभी निकलो प्रकृति में इस पहर , और
सुनो निशा से गुनगुनाती पवन ,
भीतर मन से क्षण भर निहारो ये वन उपवन ,
पल्लवित होगी मन में आशा- किरण ,
नीरस जग में रस का होगा जन्म ,
हृदय में कल्पना पंख प्रस्फुटित करेगी,
निशा-पवन।
#पवन_कुमार_वर्मा।
06 मई 2020
Superb. 👏♥️
ReplyDeleteशुक्रिया पढने के लिये।
Deleteबहुत सुंदर रचना। आप इसी तरह से लिखते जाएं आगे बढ़ते जाएं और सभी को कविताओं के माध्यम से रूबरू करवाते रहें।
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी, बहुत बहुत आभार।
DeleteOsmm💖💯
ReplyDeleteशुक्रिया जी
DeleteNice bhai,
ReplyDeleteMujhe asa abhas ho raha hi ki bhabhi ji, ka name nisha hi😍😍
ये तो वक्त ही बतायेगा भाई।🙏पढने के लिये शुक्रिया ।
Delete😍
DeleteBahut khoob bhai....👍.. .
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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