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Showing posts from March, 2021

मुहबत्त के रंग

"मुहब्बत के रंग"                                                     ( 1) आस पास घना अंधेरा था । बिजली चमकने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जिसकी कड्कडाहट में रेन शैल्टर पर बैठा रोहन अकेला सिर्फ और सिर्फ प्रेरणा को ही याद कर रहा था । “ आखिर एसा कैसे हो सकता है जिस लड़की के लिये मैने दिन, रात कुछ नही देखा वह इस तरह आज नजर अंदाज कैसे कर सकती थी । उसे मेरे साथ एसा नहीं करना चाहिए था ” एसे न जाने कितने सवालों के घेरे में डूबा रोहन अपने चेहरे को एक हाथ से सहारा देते हुए बैठा था । रोहन कि आंखे भर आई थी और एकटकी लगाये बैठा सामने वाले खंबे को देख रहा था । अचानक से फिर बिजली चमकी और बादलो में गिढगिढाहट हुई । जिसने रोहन के मायूस चेहरे को चौंका दिया । वह अचानक उठ खड़ा हुआ और अपनी आंखे पोंछते हुए आस पास देखने लगा । रात के अंधेर में कुछ भी दिखाई न दे रहा था । उसने जेब से अपना फोन निकाला और कॉंटेक्ट लिस्ट टटोलने लगा । फोन पर एक सुंदर सी फोटो के साथ ना...

पांडे जी की मूछें ।

  ।।पांडे जी की मूंछे ।। पांडे जी , पांडे जी , मूछें आपकी बेहरम सी, एक , रौब मूंछो का , दूजी गर्मी वर्दी की । पांडे जी , पांडे जी , मूंछे आपकी बेहरहम सी ,     चले तो, हाथी सी चाल हैं , बोले तो, सिंह सी दहाड़ है, वर्दी का है नशा बड़ा , पांडे जी कि मूछें कमाल है। पांडे जी , पांडे जी , मूछें आपकी बेहरम सी,     देखें तो , Ak47 सा वार है, उठें तो, मूंछो में भी धार है। एक ताव पर लाखो घायल, पांडे जी की मूछें   हथियार है। पांडे जी , पांडे जी , मूछें आपकी बेहरम सी,     नजर न लगे इन मूंछो को   , रखना संभाल के पांडे जी , मूछें आपकी का ति ला ना , न करना गुमान , पांडे जी , पांडे जी , मूंछे आपकी बेरहम सी । एक , रौब मूंछो का , दूजी गर्मी वर्दी की । पांडे जी , पांडे जी, पांडे जी, पांडे जी ।।   -          पवन कुमार वर्मा ( प व न )           12 मार्च 2021

क्या से क्या हो गया हूँ मैं,

।।गीत।।   क्या से क्या हो गया हूँ मैं, तेरे बिना, जाने कहां खो गया हूँ मैं ।   मेरी जिन्दगी और तन्हा रास्तें, गम में भी खुश हूं तेरे वास्ते, मैं अकेला हो गया हूँ । तेरे बिना , जाने कहां खो गया हूँ मैं ।   मेरे जिस्म को चुभती है शामें, तेरे ख्यालों में कटती है रातें , मैं बेजुबां हो गया हूं । तेरे बिना, जाने कहां खो गया हूँ मैं ।   गर्द हो गई दीवारो पर तस्वीरें, गुमसुम हो गई गुजश्ता शामें मैं बे-जर हो गया हूं, तेरे बिना, जाने कहां खो गया हूं मैं ।   क्या से क्या हो गया हूँ मैं, तेरे बिना, जाने कहां खो गया हूँ मैं ।     – प व न # पवन कुमार वर्मा 10फरवरी2021

स्त्री वेदना

-स्त्री वेदना   यहां पित्तृ-सत्ता समाज में एक औरत का जब जन्म हुआ । मां बाप के किये दान में उस बेटी का वर्चस्व खत्म हुआ । बाल उम्र में परिणय देखा, बंधन बचपन से शुरु हुआ।  सिंदुर पिया का, हार ,कंगन , हर श्रृंगार पिया के नाम हुआ। आशीष मिला तो सदासुहागिन , वो भी पिया के नाम हुआ । क्या अपराध  किया, ये कि नारी का जन्म लिया ? या कोई शाप रहा जो फलित हुआ।   हुआ गर्भ तो भी 100-100 व्यंग्य वार सहे, हुई बेटी गर तो , घर छोड़ने को यह तैयार रहे । न साथ रहा पिया का , इस मां जाने क्या-2 कष्ट सहे। लाख व्यंग्य सुन उसने, फिर भी कन्या को जन्म दिया ।   (फिर क्या हुआ)   न दीप जले , न गीत चले, न उत्सव घर पर कोई हुआ । अंधेरा रहा दिन में भी, बेशक घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ। हिम्मत कर औऱत ने प्रश्न , पिया से पूछ लिया । आखिर क्यों न बेटी चाहते हों ? देखो ये कली सा मुखड़ा , क्यों इससे इतराते हो।  है कुछ शंका तो बताओ, क्यों फर्ज से भागते हो । कोई डर है तो मैं तुमसे एक वादा करती हूँ। इसके हिस्से में बद्दुआएँ हैं गर , लेने का मैं इरादा करती हूँ। लेकिन न  पिया ने कोई जवाब दिया ...