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भैया दूज

।।भैया दूज।। प्यारी बहना! किसके लिये रखा है तुमने उपवास, सजाई है किसके लिये पूजा कि थाली, कौन हमउम्र है वो फैला रहे जिसके लिये, तुम खुदा के दर पर झोली। प्यारी बहना! ये रोली यो टीका ये मिठाइ ये धूप, ये किसके लिये कर रहे हो अन्नत्याग, जानते हो क्या उसे तुम, जिसकी उम्र की कामना के लिये कर रहे तुम परित्याग। प्यारी बहना! जान तो लो जिसे तुम भाई कहते हो, तुमको वो बहन कहता है, मगर तुम्हारे जैसी को बेरहम कहता है, उसे कोइ हॉट कोइ पटाखा तो कोइ बॉम दिखती है, हर लडकी देखकर उसकी आंखो में कामुकता छलकती है। उसे परवाह नही रहती है कोइ, उसे तो बस नजरो से भी प्यास बुझानी है, चाहे डरकर सहम जाये वो युवती, उसे तो बस उसकी इज्जत उछालनी है। प्यारी बहना! तुम्हारी तरफ कोइ आंखे उठाये उसकी आंखे फोड सकता है वो, माना तुम्हारे लिये जान भी दे सकता है वो, लेकिन तुम्हारे जैसी युवती को जाने क्यो खिलौना समझ बैठता है वो। क्यो हर लडकी को हवस भरी नजरो से देखता है वो,  एसा नहीं कि किसी ने किया न हो उसका प्रतिकार, लेकिन तौहीन समझता है वो इसे अपनी शान की , कामुकता को ही मर्दानगी समझ बैठता ...

कदम बोलते है।

कदम बोलते है।। कदम बोलते है कर्मभूमि चूमकर, गगन गूँज कर, सूरज तपन, घन गर्जन, खूँखार तड़ित में भी नहीं रुकते,  कदम उठते है धूल पत्थर कीचड़ मे भी क्योंकि कदम बोलते है एक जवान की भाषा। विकट विपदा हो या घोर आपदा चाहे संकट हो तन मन धन पर जब भी, दुश्मन हो बलवान चाहे  पहाड़ खड़े हो सामने मुसीबतो के जब भी, साहस भरा होता है सीने में  आशा होती है पार लगने की तब भी,  क्योंकि कदम नहीं रुकते, कदम बढ़ते हैं  और बोलते है जवान की भाषा। कितना भी रोक लो उठते कदम नहीं रुकते, कट जाते है शीश फिर भी कदम नहीं टूटते, क्योंकि सीखा है कदमो ने केवल उठना, सीखा है नामुमकिन को मुमकिन करना, हार, जीत में बदलना भी मुमकिन है  कदमो की झंकार से,  कदमो का उठना भी स्वभाविक है , जिगर की हुंकार से, कदमो का उठना मजबूरी नहीं साहस है सीने का, कदमो का बढ़ना दौड़ नहीं उत्साह है जीने का, जवानो का जीतना,  चीत्कारो के बीच से जीत को खींचना,  कदमो की दृढ़ता है, जवानो की वीरता कदमो की अटलता है, जवानो का मौन, मौन नहीं सहजता है,  क्योंकि जवा...