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Showing posts from July, 2020

न्याय।

एक अपराध की कोशिश होती है । और पूरी हो जाती है ।  दर्ज हो जाते है मामले  भिन्न भिन्न धाराओं में चलती है तफ्तीशें ,  अदालतों में पेश होती है दलीलें , पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें । कोई, रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है  कदाचित् लोक सेवकों के पांव , लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है , अंततः वह तो मिल ही जाता फरियादी को , लेकिन कर नहीं पाता न्याय , क्योंकि  वह बिक जाता है । नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में , और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में । संवेदनाएं अभी भी होती है साथ किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार, मंजूर कर लेता है अपनी हार, क्योंकि  वह समझता है,  वह नहीं है रसूखदार,  न ही वह कानूनी तजुर्बेकार , उसे नहीं मिल सकता न्याय।  मूंद लेता है आंखे , न्याय देवी की तरह  बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी , न्याय के तराजू में नहीं डाल पाता सबूतो का भार , न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है , किसी न किसी पाले में , स्थिर नहीं रहा सका कभी यह,  रहा है स्वतंत्र कब ...