एक अपराध की कोशिश होती है । और पूरी हो जाती है । दर्ज हो जाते है मामले भिन्न भिन्न धाराओं में चलती है तफ्तीशें , अदालतों में पेश होती है दलीलें , पेश होती है आरोपी पक्ष से अपीलें । कोई, रसूखदार हो तो परिचय डगमगा देता है कदाचित् लोक सेवकों के पांव , लेकिन फिर भी न्याय तो न्याय है , अंततः वह तो मिल ही जाता फरियादी को , लेकिन कर नहीं पाता न्याय , क्योंकि वह बिक जाता है । नीलाम हो जाता है फरियादी की मजबूरियों में , और गिर जाता है न्याय ,अन्यायी के पाले में । संवेदनाएं अभी भी होती है साथ किंतु फरियादी करता नहीं प्रतिकार, मंजूर कर लेता है अपनी हार, क्योंकि वह समझता है, वह नहीं है रसूखदार, न ही वह कानूनी तजुर्बेकार , उसे नहीं मिल सकता न्याय। मूंद लेता है आंखे , न्याय देवी की तरह बांध लेता है वह भी आंखो पर पट्टी , न्याय के तराजू में नहीं डाल पाता सबूतो का भार , न्याय तो न्याय है वह तो लुढक ही रहा है , किसी न किसी पाले में , स्थिर नहीं रहा सका कभी यह, रहा है स्वतंत्र कब ...
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